सावित्री बाई फुले की पुण्यतिथि, कैसा था भारत की पहली महिला शिक्षक का जीवन

सावित्री बाई फुले भारत की प्रारंभिक और प्रमुख समाज सुधारिका एवं कवयित्री थीं। उनका 10 मार्च, 1897 को निधन हो गया था। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करके सशक्त बनाने और पिछड़े समुदायों को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित करने का संकल्प लिया था। सावित्रीबाई फुले को अक्सर भारत की पहली महिला शिक्षक माना जाता है। आज हम उनकी पुण्यतिथि मना रहे हैं, आइए उनके बारे मे विस्तार से जाने।

प्रारंभिक जीवन:

सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले के नाईगाव गाँव में हुआ था। वे माली जाति के एक विनम्र कृषक परिवार में जन्मीं, जिसे उस समय एक साधारण जाति माना जाता था। उनके पिता खंडोजी नेवासे पाटील एक किसान थे जिनके पास बहुत कम जमीन थी। दुर्भाग्य से, उनकी माँ लक्ष्मी का निधन होने से वह बचपन में ही 9 साल की उम्र में अनाथ हो गईं थीं। उनके एक बड़े भाई और एक छोटी बहन थी।

परिवार की पृष्ठभूमि:

तत्कालीन प्रचलित रिवाज के अनुसार, सावित्री बाई का विवाह बहुत कम उम्र में ही हो गया था। महज 9 साल की उम्र में ही 1840 में उनकी शादी 13 वर्षीय ज्योतीराव फुले से कर दी गई थी, जो कि पुणे से एक समान विनम्र परिवार से आते थे। शादी के बाद वे अपने ग्रामीण गाँव को छोड़कर पुणे चली गईं, जो उस समय एक समृद्ध शहर था।

तत्कालीन प्रचलित रिवाज के अनुसार, सावित्री बाई का विवाह बहुत कम उम्र में ही हो गया था। महज 9 साल की उम्र में ही 1840 में उनकी शादी 13 वर्षीय ज्योतीराव फुले से कर दी गई थी, जो कि पुणे से एक समान विनम्र परिवार से आते थे। शादी के बाद वे अपने ग्रामीण गाँव को छोड़कर पुणे चली गईं, जो उस समय कुछ समृद्ध शहर था।

भारत की पहली महिला शिक्षक:

1848 में, सावित्री बाई और उनके पति ने पुणे में लड़कियों के लिए भारत की पहली आधुनिक विद्यालयों में से एक की स्थापना की। जब महिला शिक्षा अभिशप्त थी और पिछड़ी जातियों की लड़कियां भेदभाव का सामना कर रही थीं, उस समय उनका यह प्रयास क्रांतिकारी था। सावित्री बाई ने विद्यालय में पढ़ाया, पुस्तकें लिखी और लड़कियों एवं महिलाओं को शिक्षित करने के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए निरंतर कार्य किया।

काव्य फुले

“काव्य फुले” सावित्री बाई फुले की सर्वाधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रचना है। यह 1854 में प्रकाशित एक कविता संग्रह है। इस संग्रह में कुल 9 लंबी कविताएं शामिल हैं जो उस समय के भारतीय समाज की कुरीतियों पर प्रहार करती हैं। कविताओं में पितृसत्ता, जातिगत भेदभाव, बाल विवाह, विधवा शोषण आदि समस्याओं पर कटु आलोचना की गई है। सविता बाई ने अपनी कविताओं के माध्यम से महिलाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई।

10 मार्च, 1897 को 66 या 67 वर्ष की आयु में पुणे में सावित्री बाई फुले का निधन हो गया था। उसकी मृत्यु किसी लंबी बीमारी या बुढ़ापे से संबंधित प्राकृतिक कारणों से हुई है। कुछ स्रोतों में उल्लेख है कि अपने अंतिम वर्षों में, दमनकारी परंपराओं के खिलाफ सामाजिक सुधारों के लिए वर्षों के अथक परिश्रम और संघर्ष के कारण सावित्रीबाई बहुत कमजोर हो गई थीं।

जैसा कि हम उनकी पुण्यतिथि मनाते हैं, हमें सावित्री बाई फुले को न केवल एक प्रतीक के रूप में, बल्कि एक साहसी महिला के रूप में याद करना चाहिए, जिन्होंने दलितों के उत्थान के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी और लैंगिक समानता के मुद्दे को उठाया। उनकी विरासत एक न्यायसंगत समाज की दिशा में प्रयास करने वाले सभी लोगों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करती है, जहां प्रत्येक व्यक्ति को, लड़का लड़की या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना, शिक्षा और विकास के अवसरों तक पहुंच प्राप्त है।

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